भक्ति की शक्ति ईश्वर क़ो उस चौखट तक भी ले आते है, जंहा भक्त रहता है,
ये कहानी इसी पर आधारित है,
कहानी
ये कहानी परमानंद नामक ब्राह्मण का था,,,,जो बचपन से अपने पिता क़ो पूजा पाठ औऱ हवन इत्यादि करते देखता था,
हलाकि उस उम्र मे उसे इन सब चीजों मे परमानंद को कोई रुचि नहीं थी, क्योंकि उसकी उम्र तो बस अभी खेलने कूदने की थी,
पर हां वह इतना जरूर समझता था कि धर्म-कर्म इंसान के लिए बहुत जरूरी होते हैं, परमानंद को बचपन से जीव जंतु तथा मॉक प्राणियों से बहुत लगाव था,
वह नन्हें पालतू जानवरों को हमेशा आश्रय देता था, एक बार उसने एक कुत्ते के बच्चे को अपने घर में आश्रय दिया था,
वह पिल्ला देखते ही देखते अपने दो और साथियों को घर में ले आया,,, परमानंद ने उसके बचपने को नजरअंदाज करते हुए सभी को आश्रय दिया, परमानंद उन सभी से खेलता और खिलाता था, उस घर में परमानंद के पिता माता और दो छोटे भाई रहते थे,,, हालांकि परमानंद के दोनों भाई भी बहुत समझदार और दयालु थे,
इसलिए परमानंद की गैरमौजूदगी में उन तीनों पालतू जानवरों के संरक्षण वे दोनों ही करते थे, एक बार परमानंद किसी काम से बाहर गया हुआ था, इसी बीच उन तीनों पालतू जानवरों की तबीयत एक साथ बिगड़ गई,,,,, तीनों पालतू जानवरों की तबीयत एक साथ बिगड़ने का कारण समझ में किसी को नहीं आया,
परमानंद के वे दोनों छोटे भाई उन दोनों पालतू जानवरों की सेवा में लगे हुए थे, थोड़ी देर बाद परमानंद के आने के बाद तीनों पालतू जानवर भी धीरे-धीरे स्वस्थ हो गए, शायद यह एक भावनात्मक बीमारी थी जो परमानंद की गैरमौजूदगी में उन तीनों बच्चों के साथ हुई थी,
जिस कारन परमानंद के आते ही वे तीनों स्वस्थ हो गये,
कभी कबार परमानंद उन तीनों पर भड़क भी जाता था, उनकी हरकतें ही कुछ ऐसी थी परमानंद के खिलौने जहां-तहां छुपा कर उन्हें कुतरते रहते थे, इसलिए परमानंद कभी-कभी उन पर गुस्सा भी करता था,
इन्हीं सब चक्कर में उन तीनों मे से दो पिल्लो ने प्लास्टिक के खिलौने कुतर कर खा गए, जिस कारण उनकी तबीयत बहुत खराब हो गई......... कई तरह की दवाइयां खिलाई गई,लेकिन कोई सुधार नहीं था,,,,, परमानंद और उसके दोनों छोटे भाई सारी रात जग कर दोनों की रखवाली कर रहे थे,,,,,,, इसी तरह कई रात और दिन उन्होंने उन दोनों की देखभाल में गुजार दी, एक रात जब परमानंद उनके पास बैठा ऊंघ रहा था, तब उसके छोटे भाई ने कहा भैया तुम जाओ मैं यहीं पर रुकता हूं,
परमानंद जाकर अपने बिस्तर पर लेट गया,बस कुछ ही पल हुए थे, परमानंद के वहां से हटते ही उन दोनों में से एक पिल्लै ने अपनी आखिरी सांस ली,इसके बाद तुरंत परमानंद को जगाया गया,
परमानंद को जानकर बड़ा अफसोस हुआ कि मैं जब तक वहां था तब तक सब कुछ ठीक था, मेरे हटे यह कैसे हो गया, काश मैं वहां से नहीं हटता!!!
परमानंद को यह मात्र एक आकाशमात घटना लगी थी, इस घटना को याद करते हुए परमानंद ने दूसरे पिल्ले की रखवाली अच्छे से की और औरवह स्वस्थ्य हो उठा,
परमानंद को उस रात की घटना पर अफसोस था, इस घटना के कई साल बीत गया, परमानंद बिल्कुल बड़ा हो चुका था, और उसके दोनों भाई भी युवा हो चले,
परमानंद पेशे से एक ब्राह्मण था, वह घर-घर जाकर याजको के यहां पूजा करवाता था और अपना जीवन यापन करता था, इसी दौरान भगवान की कृपा हुई उसका,,,,, और उसके घर एक नन्हे बालक आया,
उस बालक के आने से परमानंद के भाग्य खुल गए, अचानक से उसकी संपत्ति में काफी इजाफा हुआ,,,
परंतु नकारात्मक शक्तियां भी साथ आयी,,, जिस कारण लोगों के मन में यह बात घर कर गई अचानक इस ब्राह्मण के पास इतना धन कैसे आ गया, जरूर या कोई काली विद्या जानता है, वरना रातों-रात खजाना कहां से हाथ लग गया इस तुच्छ से ब्राह्मण को,,
ब्राह्मण के आसपास रहने वाले कई लोग आपस में या बात करने लग गए कि या ब्राह्मण कोई विधा करता है इसलिए इसके पास धन आ गया,
यह बात गांव में तेजी से फैलने लगी, और ब्राह्मण के प्रति सब का नजरिया बदल कर क्रोध में परिवर्तन हो गया, अब सब उसकी अवहेलना करने लगे, ब्राह्मण जहां कहीं से भी गुजरता आसपास लोग चुगली करते नजर आते, कुछ लोग मुंह पर ताने मारते हैं,
समय जैसे-जैसे बीता जा रहा था, लोगों के मन में आशंका है उतनी ही बढ़ती जा रही थी, हालात ऐसे हो गए थे कि किसी के घर में दूध भी उबल कर गिर जाता तो वह ब्राह्मण का दोष लगाते,,,,, कहते कल यही से गुजरा था जरूर से उसी ने कुछ किया होगा,
जबकि ब्राह्मण अपने घर और अपने संसार की चिंता में व्यस्त था...अपने पिता के जाने के बाद उसे अपने भाइयों की दया की चिंता सता रही थी,,,, मन ही मन एक ही बात थी कि इन दोनों का ब्याह कर दूं तो अपने पिता द्वारा दी गई दायित्व से मुक्ति पाऊं,
परंतु कोई अच्छा रिश्ता उसके घर से रिश्ता नहीं करना चाह रहा था,,, क्योंकि ब्राह्मण के बारे में लोग न जाने कैसी कैसी अफवाह बाहर उड़ा चुके थे,,
जब यह बात ब्राह्मण के कानों में पड़ी, तो बस एक ही बात दिमाग में आई........ इतनी पूजा-पाठ इतनी श्रद्धा रखने के बाद अगर मेरे साथ यह हो रहा है, तो मैं सब छोड़ दूंगा.......... उसने भगवान के पास जाकर हाथ जोड़े औऱ अपनी आंसुओ से सारी ब्यथा बताई.......
आप ले चुका था कि जब तक लोग कहना नहीं छोड़ेंगे वह भगवान के मंदिर में दिया नहीं जलायेगा, ना ही किसी यजमान के घर पूजा करने जाएगा...
भगवान के सामने उसने 100% अपने निर्दोष होने की बात कही, वह जानता था उसके सारे कर्म से भगवान को समर्पित रहे है...
हां मन ही मन बहुत दुखी था.... लोगों से उसकी आशाएं भी कम हो चुकी थी, सब भगवान से आशा थी....... और उसे विश्वास था कि भगवान उसकी आत्मा को कभी नहीं तोडेंगे, नहीं टूटने देंगे
एक रात जब वह सोया हुआ था,,,,, उसे प्यास लगी और वह जाग उठा
वजह से ही पानी पीने के लिए मटके के पास गया.... उसे एहसास हुआ कोई उसके पीछे खड़ा है,पीछे मुड़ते ही उसे किसी की परछाई में महसूस हुई,,,, उसे ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे कोई उसके साथ लुका छुपी खेल रहा हो,
परंतु हुआ अपनी चिंताओं में डूबा था इसलिए वापस जाकर अपने बिस्तर पर सो गया..... और आंखों को बंद करते ही अगले पल उसके सामने उसके इष्ट देव आ खडे हुए.........
वह नजारा देखने लायक था......सुनहरे रंग से रंगे,मानो पुरे शरीर से सोने की चमक आ रही हो,,,,
परमानन्द क़ो यह दृश्य उसके दिल दिमाग़ के अंदर तक असर कर गया,
जिसकारण वह आंखे खोल बैठा.....औऱ होश मेरे आकर उसे कहीं अधिक दुख हुआ........परन्तु ईश्वर तों उसके पास ही थे,,इसलिए उन्होंने दोबारा उसे दर्शन दिए...इसबार परमानन्द ने अपने ईष्टके माथे से लगे पांचमुख वाले नाग क़ो देखा... जो जीवित होते हुवे भी सोने की भाती प्रकाश कर रहे थे,,,,,
आँखों मे यही दृश्य लिए सुबह उठकर परमानंद ने ईश्वर क़ो नमस्कार किया............. उसे ऐसा आभाष हो रहा था,जैसे आज बस कुछ अच्छा होने क़ो है,,,,,,,,,,
उसने थोड़ी देर बाद ही अपने कानो मेरे हरे कृष्णा....हरे रामा की धुँन सुनी....वह तुरंत खिड़की की औऱ झाँकने निकला.......
उसने देखा पीली पोशाक मेरे एक वैष्णव ब्राह्मण कीर्तन करते हुए जा रहा था....... माथे पर चंदन टिका.......... औऱ जैसा पीला नागो का मुकुट परमानन्द ने ईष्ट के माथे पर देखा था...ठीक वैसा ही सुंदर पीली पगड़ी धारण किये,वह ब्राह्मण कीर्तन करते जा रहा था,
लोगो के लिए वह एक सामान्य सा ब्राह्मण था...पर परमानंद क़ो रात्रि मेरे दिए अधूरे आभाष ने एहसास करवा दिया था की वे प्रभु के रूप मेरे प्रमानन्द क़ो अस्वासन देने आये थे, की मै हमेशा तुम्हारे आस पास ही हु,
परमानंद का यकीन तब पक्का हो गया....ज़ब उस ब्राह्मण ने बेवजह अपने पैर धोये.......औऱ आगे चल निकले,
क्युकि परमानंद हर दिन अपने ईष्ट के चरणा अमृत क़ो माथे से लगाता था,
इस तरह परमानन्द क़ो आश्वाशन देने ईश्वर खुद आ गये,,,,,
जिसके बाद भले लोगो से परमानंद का विश्वास टूट चला हो,मगर अपने ईष्ट पर उसने हमेशा अपना विश्वास क़ायम रखा,
शिक्षा :- निष्ठां सच्ची हो तों स्वम् भगवान भी भेष धर कर आ जाते है, भगवान के दर से बड़ी कोई अदालत नहीँ,
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