बड़ा नाम सुना था उस मन्दिर का, लोग कहते है सच में वहां भगवान शिव विराजमान है, पर मुझे कभी यकीन नहीँ हुआ, भला भगवान शंकर साक्षात् किसी भी मन्दिर में कैसे रह सकते है,
फिर भी मै वसुंधरा अपने परिवार जनो के संग उस मन्दिर के दर्शन को निकल गयी, मन्दिर काफी दूर था,,,,, और हमारे गाँव से ईरिक्शा के जरिये मन्दिर तक पहुंचने में पांच घंटे लगे,,,,,
इतना समयानुसार लगने वाला था इसलिए हम सुबह 5 बजे ही घर से निकले थे, और 10 बजते बजते हम मन्दिर के सामने खडे थे,
देखने से तों यह मन्दिर बिल्कुल आम मन्दिर की तरह साधारण ही लग रही थी, मामूली सा ढाँचा....
मन्दिर से निकलते ही सामने एक बरगद का पेड और पेड से ठीक निचे बड़ी सी नदी........
धूप भी पुरी मन्दिर तक नहीँ पहुंच पा रही थी.... भला इस मन्दिर में असि क्या खाश बात हो सकती है जो भगवान शिव यहां ठहरे हुए है......
चलो मन्दिर जाकर देखते है...... मन्दिर के भीतर प्रवेश करते ही इतनी शीतलता महसूस हुई जैसे किसी ने Ac ऑन क़र रखी हो,
मन्दिर के बीचोबीच एक सफ़ेद शिवलिंग विराजमान था, और शिव लिंग के थी बाहर नंदी महराज भगवान शंकर के पहरेदार बने हुए थे, सामने बर्गर बरगद के पेड़ से सटे चबूतरे पर बैठकर देखने से वहां का नजारा अपने आप में अद्भुत था,
थोड़ी दूर जाने के बाद एक बड़ी ऐसी गली मिलती जिसके दोनों तरफ छोटी-छोटी दुकानें थी जिसमें हर तरह के सामान मिल गए थे जो भगवान को अर्पित करने और चढ़ावे में काम आते हैं,
वहां के लोगों से पूछने से पता चला तेजा मंदिर एकांत में रहता है तुम मंदिर से किसी के नृत्य करने और हुंकार भरने की आवाजें आती है, भला मंदिर में कौन आ सकता है या भगवान शिव का मंदिर था इसीलिए सभी ने मान लिया कि हे भगवान शिव स्वयं विराजमान है, हालांकि या मंदिर ज्यादा पुराना नहीं है परंतु ऐसा कहा जाता है कि यहां के बड़े जमींदारों ने इस मंदिर को बनाया था,
एक विचित्र घटना के अनुसार एक छोटे से बालक ने मंदिर में स्वयं भगवान शिव को देखा था, उसका कहना था कि भगवान शिव ने उसे हाथ में एक प्रसाद दिया और उस बालक के सिर पर हाथ फेर कर आशीर्वाद भी दिया, बालक मात्र 6 वर्ष का था इसलिए उसे ठीक से कुछ भी याद नहीं परंतु वह जितना भी बोल सका उसे बताया कि वह भगवान शंकर ही थी जिन्होंने उसे हाथों में प्रसाद दिया था,
वह बालक तब से बहुत ही विख्यात है और हर कोई उस बालक के पास जाकर आशीर्वाद लेता है वह बालक भगवान शंकर का भक्त कहलाता है उसका उसका नाम भी सबने सेवा ही रखा है,
एक बार शिवा के पिता जो कि एक ट्रक ड्राइवर है उनकी गाड़ी एक सुनसान रास्ते पर बंद पड़ गई थी, कई घंटे धूप में प्रयास करने के बाद भी वह गाड़ी ठीक ना होगी उस समय वह बिल्कुल अकेले थे उनकी मदद के लिए कोई कोई सामने नहीं आया, शिवा के पिता कद काठी से लंबे चौड़े थे,
अचानक रोड पर खड़े शिवा के पिता को किसी गाड़ी ने अवतल में टक्कर मार दी और वह एक तरफ बेहोश होकर गिर पड़े, जब उन्हें होश आया तो उन्होंने देखा कि वह गाड़ी में लेटे थे, फिर में किसी तरह गाड़ी चला कर अपने घर तक आए पता नहीं उनके घर गाड़ी अचानक कैसे ठीक हो गई,
उन्होंने जब यह बात अपने घर आकर बताएं तो सब का भगवान शंकर पर अटूट विश्वास हो गया कि उनका मदद उनकी मदद करने वाला और कोई नहीं भगवान शंकर यह थे उन्होंने ही निंद्रा की अवस्था में शिवा के पिता को उठाकर गाड़ी में और गाड़ी को भी ठीक कर दिया,
शिवा को स्वप्न में भगवान शंकर के दर्शन होते हैं ऐसा गांव वाले और कुछ सेवा कहता है भगवान शंकर उस उस पर अपनी कृपा हमेशा बनाए रखते हैं और उसे अपने सपनों में हमेशा दर्शन देते हैं, शिवा बताता है कि भगवान शंकर सर्प लपेटे, बाघ की छाल पहने होते हैं तथा उनके सिर पर मोटी जटाये होती है,
गांव के लोगों से जब सुना तो उन्होंने बताया कि शिवा के साथ हर दम भोले शंकर उपस्थित रहते हैं कई बार गांव वासियों ने भगवान शंकर की छाया शिवा के साथ देखी थी मगर इस बात पर विश्वास करना सही है या गलत हमें नहीं पता,
इस गांव तथा मंदिर का पता कहानी में उल्लेख किया नहीं रह सकता मगर अपनी राय से हमें बताएं कि क्या आप सच में भगवान शंकर को मानते हैं कि वह जिसके साथ ही बन जाते हैं उसकी हर पल साथ निभाते है,
इस पर अपनी राय हमें कमेंट के माध्यम से जरूर बताएं
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