पुरानी मान्यताओं को जिन्दा रखने वाले अभी भी कई गाँव ऐसे है जो भले दुनिया के किसी कोने में क्यूँ ना हो वहां के ब्यक्ति कहीं भी बसने के बाद भी अपनी मुलाक़ात संस्कृति नहीँ छोड़ते......
येlकहानी दीपू की है जो एक टापू नुमा जगह पर रहता था, सायद भुत काल में वह आदिवासी ही रहा होगा, मगर अब वहां के लोग आम जिंदगी जी रहे है क्युकि उस टापू को मेन शहर से जोड़कर वहां के रहने वालो को लिए शहर की सारी सुविधाएं खोल दि गयी है,
और समय बीतता रहा, पहनावे से वहां के लोग भी शहरी द्खखने लगे, शहर जाकर बच्चे पढ़ने लिखने लगे, और कइयों को तों अच्छी नौकरिया भी मिल चुकी है, जिससे धीरे धीरे ही सही पर टापू का नक्शा बदल रहा है, उस टापूपर स्थित गाँव का नाम शीतला था,
यहां के लोग बोली चली से बिल्कुल सीधे साधे है, और पुरानी मान्यताओ के अनुसार यहां समुन्द्र में रहने वाली एक जलपरी की सालाना पूजा करने की जाती है,
यह जलपरी इनलोगो पर अपना आशीर्वाद रखती है, कहते है की किसी ने उस जलपरी को कभी देखा तों नहीँ पर वह देवी की तरह सबके सपनो में आकर उसके मन के सारे तकलीफो को दूर क़र देती है, इस जलपरी का नाम नीले जल की जलपरी बताया था लोगो ने,
उन्ही में से एक दीपू भी गाँव का रहनेवाला है, परर अब वह पुरी तरह से शहरी बन चूका है, शहर में जाकर पढ़ाई और नौकरी पाने के बाद उसके बाहरी और अंदर के हुलिए में काफी बदलाव आया है,
दीपू बचपन से ही उस जलपरी को अपने सपनो में देखता था,,, सायद उस जलपरी का दीपू पर खाश आशीर्वाद प्राप्त था, तभी उसकी मार्ग के हर बाधा को जलपरी ने देवी बनकर दूर किये थे,
दीपू को फोटोग्राफी का शौख था, वह ज़ब भी अपने गाँव आता, आस पास के फोटो लेकर शहर में अपने दोस्तों को दिखाता, वे भी उस टापू की सुंदरता को देख मन्त्रमुग्ध हो जाते,
दीपू फिलहाल 10 दिनों के लिए गाँव आया हुआ था, उसे घर के किसी अपने कक शादी अटेंड करनी थी, इसलिए उसके साथ दो दोस्त भी आये थे,
इस समारोह के बिच ज़ब दोस्तों को समय मिलता वे आसपास के प्राकृतिक नजारो को देखने में मस्त हो जाते, इस बिच शादी भी हो गयी और अगली सुबह वे शहर की और निकलने वाले थे,
आज उन्होंने निश्चय किया सबसे सुंदर जगह जाकर तस्वीरे लेंगे, इसके लिए उन्होंने पास के ही एक छोटे से आईलैंड जो की बस नाम का आईलैंड था, वहां एक बड़ी चट्टन और थोड़े भुत घास और झाड़ियों के शिवा कुछ भी नहीँ था, वहां जाकर समुन्द्र के सुंदर नजारे और फोटो लेनी थी उन्हें........ वहां पहुंचकर उन्होंने थोड़ी मछलिया पकड़ी और अगर पर सेक क़र खाने लगे,
इसी बिच दीपू ने उन्हें उस ख़ास जलपरी देवी की कहानी सुनाई.. और बताया की उसके सपने मुझे हमेशा आते है, मै उन्हें देखकर अपनी सारी परेशानी भूल जाता हु, वे खामोश बड़ी उत्सुकता से दीपू की बात सुन रहे थे,
थोड़ी देर बाद सभी इधर उधर की तस्वीरें लेने में जुट गया,,,,,
अचानक उनकी कैमरे में उन्हें कुछ विचित्र दिखा..... ये क्या था उन्हें भी समझ नहीँ आया, पर दोनों दोस्तों को आशंका थी की उसने जलपरी को देखा था, ज़ब ये बात दीपू से कहीं तों वह चौक गया...... और कहने लगा काश मै भी देख पता,
थोड़ी देर बाद सुनहरे पोशाक पहनी एक लड़की उनकी सामने आई, वह बिल्कुल आम लग रही थी, उसने अपना नाम सीयल बताया, सभी उस लड़की को देखकर खुश हो रहे थे,
उनके ग्रुप में जान आ गयी थी, अब बोरियत बिल्कुल महसूस नहीँ हो रही थी, बातो ही बातो में लड़की ने कइ सारे ऐसे बातो का जिक्र किया जो उनकी निजी जिंदगी की मुसकील बनी हुई थी,
उसे सुलझाने का उसने रास्ता भी दिखाया,
उस जलपरी ने बताया की यहां के लोगो में से किसीने ने उसकी जान बचाई थी, जिसके कारन वह जलपरी उस टापू के लोगो की सहायक बन गयी, और हमेशा उनकी रक्षा करती है,
जलपरी के साथ उनका साथी भी साथ रहता है, मगर लोगो में ज्यादा चर्चाये सिर्फ जलप्रफियों को लेकर होती है,
ज़ब सभी ने पूछा की वो दिखती क्यूँ नहीँ है, और दिख भी गयी तों हम इंसानों से भागते क्यूँ है, वो लड़की ने कहा " इंसानों को जलिए जीव का स्वाद लेने की बुरी बीमारी है, वो उन्हें भी ना खाले इसलिए वे उनसे बचकर रहते है,
लड़की नई थी साथ ही अंजान पर दीपू और बाकियो को लगा की सायद वह टापू की ही सदस्य है, तभी उसे इतना ज्ञात है,
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अंत में दीपू ने अपने सपनो के बारे में बताया तों लड़की ने कहा " वो तुम्हे किसी खाश बात बताना चाहती होंगी तभी वो तुमसे जुडी है " अब अंधेरा होने को था और अचानक शाम होते ही शीयला कहीं गुम हो गयी,
फिर वे भी अपने टापू को लौट आये, और अगली सुबह शहर को चल दिए,
सभी खुश लग रहे थे शिवाय दीपू के,,,,,,,,, उसके दिमाग़ में शियला की बातें घूम रही थी..... आखिर वह कौन सी बात है जो जलपरी देवी पुरे गाँव में सिर्फ मुझे बताना चाह रही थी,
इसके अगले कई सालो तक वह लगातार शहर में काम में लगा रहा... लेकिन उसके सपने आने बंद ना हुए, सपने में उसे सुनहरी जलपरी पानी के अंदर तैरती..... लहरती दिखती,
और वह प्रश्न दिमाग़ में फिर ताज़ा हो जाते....
क़ल दीपू को किसी खाश काम से अपने गाँव जाना है..... उसने ये भी सोच रखा है की इस बार मै पवित्र नदी जहाँ जलपरी रहती है, वहां जरुर जाऊंगा.....
और वह गाँव पहुंचकर अपने काम को निपटाने के बाद उस नदी के निकट पहुंचा, नदी में पानी की धार तेज थी.... और झरझर की आवाज के साथ वह बहती जा रही थी.....
दीपू याद करने लगा क्या मुझे सपने में यही नदी दिखती थी...... दिमाग़ से जवाब आया " हाँ "
दीपू समझ चूका था इसके पीछे कोई ना कोई रहस्य जरुर है, उसने रुक क़र जलपरी को याद किया....... और मन ही मन पुकारने लगा...
पर वहां उसे कोई जलपरी नहीँ दिखाई दि.....
वह निराश लौट आया... और अगली सुबह फिर उस नदी की और निकल पड़ा, ऐसा कई दिन किये जाए के बाद कोई परिणाम नहीँ निकला, अब उसने शहर जाने की सोची...
जाने से पहले उसे उसके घर के समान भी लेकर जाने थे क्युकि वहां के सभी लोग अब शहर में शिफ्ट हो चुके थे, इसलिए उसे चार पांच खाश चीजे साथ ले जानी थी, उसमे एक जंग लगी तलवार भी थी........
ये तलवार देखने से काफी पुरानी लग रही थी, उसके पकड़ने के स्थान पर दो साँप की तरह आकृति बनी हुई थी, दिपु एक पल देखकर चौक गया, भला ये तलवार हमारे घर में क्या क़र रहा है, यह तों किसी योद्धा का तलवार दिख रहा है,
उसने फोन क़र अपने बूढ़े दादाजी से तलवार के बिषय में बात की, और उसकी कहनी पूछी.... उसे दादाजी ने बताया की यह तलवार उनकी मीत्र का था,,,,,,, जिसने जलपरी की जान बचाई थी और उसका मीत्र उस युद्ध में मारा जा चूका था, लेकिन अपनी तलवार की हिफाजत के लिए उसने मुझे चुना, इस तलवार के जरिये वह मेरे साथ ही रहा हमेशा,
और इस तलवार पर अभी भी उसके रक्त लगे है, ज़ब आखिरी समय में वह घायल युद्ध में जलपरी के लिये लड़ा था,
दीपू यह कहानी सुनकर भावुक हो गया, उसे लगा तलवार घर में होने के कारण जलपरी मुझे दिखती है,
फिरभी एक आखिरी कोशिश के लिए वह जलपरी नदी के किनारो पर उस तलवार के साथ गया...... और अचानक उसके हाथ से तलवार छुट क़र नदी में जा गिरी,,,,,,,,,,
तलवार में लगा रक्त नदी में घुल गया....... इससे पहले की दीपू कुछ समझ पाता........ चमकीली तेज रौशनी की चकाचोँद्ध से उसकी आंखे खुद बंद हो गयी.........
और कुछ क्षण बाद ज़ब उसने अपनी आंखे खोली तों उसके सामने सुनहरी जलपरी अपने आँखों में आंसू भरे ख़डी थी.............
दीपू की आंख उसकी रेशमी किरणो से बंद हो रही थी....... फ़िरभी वह जलपरी को देखने की ललक लिए आंखे खोले खड़ा था, दीपू ने पाया की यह वही जलपरी है जो हर पल मेरे सपने में अति थी, और उसकी पूँछ के तरफ़ का रंग हल्का नीला था....
जलपरी के हाथो में तलवार देख दीपू बोल पड़ा....... ये तलवार पानी में गिर गयी थी, आपके पास कैसे?
जलपरी धीमे स्वर में बोली " तुम्हे याद नहीँ ये तुम्हारी ही तलवार है,
दीपू "नहीँ ये तों मेरे दादाजी के मीत्र की तलवार थी जो युद्ध में मारे गये "
जलपरी " हाँ पर तुम वही हो राजा द्धीर "
क्या? दीपू
फिर दीपू ने बताया की मुझे सपने में आप बचपन से दिखती थी,,,,,, इसके पीछे क्या रहस्य है?
जलपरी " रहस्य है, तुम्हारा साम्राज्य, तुम्हारा अपार खजाना जो अभी भी इस नदी के भीतर सुरक्षित है, मैने 59 सालो से इसकी रक्षा की है, पर अब तुम्हे इसे संभालना होगा "
दीपू " ये सब सुन ऐसा महसूस क़र रहा था जैसे ये सारी बातें उसके दिमाग़ के ऊपर से जा रही हो, क्युकि उसे कुछ भी याद नहीँ था सिवाय उसके सपनो के,
मन ही मन वो ये सोच रहा था की सच में उन सपनो से मेरा ऐसा गहरा नाता इनसब की वजह से था........
दीपू ने जलपरी से कहा " देवी आप जो केह रही है वो स्त्य ही होगा, मगर मुझे कुछ भी याद नहीँ, कौन सा साम्राज्य और कौन सा खजाना.......
जलपरी ने दीपू के हाथो में अपने हाथ रखे..... और एक शब्द कहते ही दीपू की पुरानी सारी बीती बातें उसके डोमग में घूमने लगे.......... दीपू के अंदर वे सारी जानकारी और शक्ति आ चुकी थी जो उसके पूर्व जन्म में उसके साथ था,
अब आंखे खोलने पर वह जलपरी उसे अंजान नहीँ लगी.......... उसे सब याद आ चूका था की यह जलपरी उसके सम्राज्य की अनमोल धरोहर थी... जो की नीले पानी वाले नदी में रहती थी, पर ज़ब जलपरी की शक्तियों का पता अन्य दुश्मन लोगो को चला तों उसे पाने के लिए राजा धीर के किले पर हमला क़र दिया, और घायल पड़े राजा ने जलपरी और अपने बेशकीमती खजाने को को इस स्थान पर लाकर अलविदा केह गये,
मरने से पूर्व उन्होंने अपने मित्र को तलवार सौप क़र ये कहा था की मै जल्द ही लौटूंगा........
और वे दीपू के रूप में आ गये, अब उन्हें अपना खजाना निकालना होगा, और उसकी मदद से अपना साम्राज्य वापस लेना होगा,
जलपरी की बातों पर अब उसे पूरी तरह से विश्वास हो चुका था क्योंकि उसे पूर्व जन्म की सारी किस से याद आ चुके थे, दीपू अफजल अपना सब कुछ पाना चाहता था इसलिए वाह
दीपू अब अपने किले के निकट पहुंचा, यह किला राजघराने का सबसे आलीशान खेला था, ओरिया किला कई सौ एकड़ जमीन में बनाया गया था,
जब दीपू जिले के निकट पहुंचा तो उसने देखा, सामने एक खुला मैदान है और उस के बीचो बीच लंबी मीनारों से भरी खूबसूरती और नकाशी का बेहतरीन कारीगरी से संपन्न यह किला आज बेरंग खड़ा था,
दीपू भूतपूर्व का यह दृश्य देखकर उसे समझ आ चुका था पहले और अब में इस किले में क्या अंतर था, ना तो इसकी शान और शौकत पहले जैसी रहे नहीं यहां लोगों का हुजूम दिखा,
आसपास के लोगों से पूछने पर पता चला या किला किसी तंत्र मंत्र करने वाले शक्तिशाली इंसान के कब्जे में है, इस किले के अंदर वह सारे गलत कार्य हो किए जाते हैं जोकि अमानवीय है,
राजा धीर की सत्ता हड़पने के बाद औरतों का शोषण, जनता पर अन्याय, जंगली पशुवो की हत्या, और काले जादू के लिए उनका किला विख्यात है, इसलिए उस किले से अब लोग को से दूर रहते हैं,
दीपू को सम्राज्य के साथ उसके लिए उसका मान भी वापस लौटाना था, जिसके लिए सबसे पहले वह जलपरी के साथ नदी के उस छोड़ पर गया जंहा उसका खजाना दबा हुआ था,
खजाने को निकालने पर दिलु को अनुभव हुआ की ये खजाने का मात्र आधा हिस्सा था, आधा हिस्सा उसने अपनी पत्नी के मायके वाले स्थान पर गाड़ा था, सायद वह अब उसे नहीँ मिल सकेंगे किन्तु ये धन भी उसके बहोत सारे काम में उसकी मदद क़र सकते है,
सबसे पहले दीपू ने अपनी एक सेना तैयार की और उसे गुप्तचर की तरह उस किले में दाखिल करवा दिया, उसे सभी गुप्तचर छोटी बड़ी जानकारी देते रहते, और कई घिनौने कृत्य का प्रदाफाश भी हुआ,
दीपू ने एक खाश प्लान बनाकर जलपरी की अदृश्य शक्तियों के मदद से किले के अंदर के घुसपैठियों का खतमा क़र किले पर अपना अधिकार क़र इसे पुनः पा लिया..... और धहीरे धीरे उस राज्य की खुशियाँ भी लौट आई....
जलपरी को पुनः नीले जल में स्थान दिया गया, और इस तरह से कहानी समाप्त हो गयी
शिक्षा:-
हम चाहे जितना अपनी भूतकाल और भविष्य काल से भाग ले पर हमें हमारी वास्तविक पहचान अंततः इन्ही में छुपा होता है
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