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Aghori-ne-bataya-Kund-Ka-Rahasya : कुंड का रहस्य : परब्रह्म दिलाने वाला दिब्य कुंड

शहर के बीचोबीच एक गांव में स्थित कुंड के पीछे कई सारे रहस्य छुपे हुए थे, जिससे जानने के लिए कई लोगों के मन में स्कूल के करीब जाने के सवाल भी आते तो पीछे हट जाते हैं क्योंकि वह कोई मामूली कुंड नहीं था कहते हैं वहां एक ऐसा पत्थर है जो के पद में चिन्ह की शक्ल लिए है,
 और जो कोई भी उस पद में चीन को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करता, वहां जाने कहां से एक पीला नाग उपस्थित हो जाता,

 यह कुंड कई सदियों से जस का तस पड़ा है, हालांकि इसके आसपास का भवन पूरी तरह से जर्जर होने को है फिर भी इसका जीर्णोद्धार करने की वाला ऐसा कोई मनुष्य नहीं है, क्योंकि वह सभी उस कुंड के आसपास जाने से डरते हैं, जाने कौन अपराध हो जाए जिसे भगवान नाराज होकर हमें श्राप दे दे,

 इसके अतिरिक्त वहां कई साधुओं की मंडली देखी जाती है, कई सारे ऐसे मां सोते हैं जिसने अघोरी साधु वहां बैठकर तप करते हैं, और कुछ दिनों बाद वहां से अंतर्ध्यान हो जाते हैं, वह कहां जाते हैं इसका भी किसी को कुछ भी ज्ञात नहीं,ल

 कहते हैं उस कुंड में अद्भुत शक्तियां छुपी हुई है, कुछ लोग यहां खजाने दबे होने की बात नहीं बताते हैं, पर सच क्या है यह कोई नहीं जानता,

 उसी शहर का रहने वाला एक युवक जिसका नाम मनीष है वह लगातार उस कुंड के आसपास कुछ ना कुछ करता दिखता है, उसके मन के इरादे वही जाने,,,पर लोगों ने उसे कई बार वहां से दूर रहने को कहा पर फिर भी वह वही मंडराता मिलता है,

 आखिर ऐसी क्या बात है जिसे जानने के लिए मनीष वहां पर बिना चक्कर लगाया करता था?

 लोगों को तो मनीष बिल्कुल पागल सा दिखता था क्योंकि बार-बार मना करने के बावजूद वह वही कार्य कर्ता ,गाने शहर शहर शहर 

 एक बार की बात है गांव के ज्यादातर घर बंद थे पंचायत के अनुसार उन्हें दूसरे गांव में खाली पड़ी जमीन, खेती के लिए मुफ्त में बांटे जा रहे थे परंतु जो जो जमीन का सही उम्मीदवार होगा उन्हीं को वह जमीन मिलती लेकिन मुफ्त में  जमीन के लालच में ज्यादातर घर बंद करके सभी लोग दूसरे गांव पहुंचे हुए थे,

 और इधर मनीष ने मौका पाकर उस कुंड में प्रवेश कर लिया उस कुंड का पानी पूरी तरह से हरा हो चुका था, कुंड के पानी में शैवाल भरे पड़े थे,,,

 इधर गांव में 2 दिनों से मनीष को ना देखे जाने पर मनीष के घरवाले उसके दोस्त आसपास के लोग, सभी परेशान हो गए, सभी का अंदेशा था कि वह मौका पाकर उस कुंड मैं छलांग लगा चुका है, और इस अपमान के बदले भगवान ने उसके प्राण ले लिए हैं,

 वह कुंड गांव के ठीक बीचोबीच था इसलिए लोग वहां आसपास कई दिनों से डेरा जमाए बैठे रहे, बात गांव की रहस्यमई कुंड की थी और एक भले मानुष के प्राण की,

 4 दिन बीत चुके थे परंतु अभी भी मनीष का कोई अता पता नहीं था, कुछ लोग बाहर तो कुछ लोग कुंड के द्वार पर बैठे मनीष के वापस लौटने का इंतजार कर रहे थे,

 और जैसा कि ग्रामीण लोगों के मन में था ठीक वैसा ही हुआ, करीब रात के 2:00 बजे मनीष व कुंड से वापस लौटा, वह बुरी तरह से जख्मी था, और उसके आते ही सभी गांव वालों ने उसे घेर लिया, लेकिन मनीष किसी को एक शब्द बिना बोले वह अपने घर लौट आया,

 घर आकर वह अपनी किताब पूरी करने में लग गया, दरअसल मनीष पेशे से एक लेखक था, और अपने गांव के रहस्यमई कुंड के बारे में वह लिख रहा था, जिसके कारण हुआ हर छोटी बड़ी जानकारी लेने के लिए वह कुंड के आसपास मंडराता फिरता,

 परंतु मनीष के आस पास वाले यह बात से अनजान थे, वे तो यही समझते कि मनीष किसी मानसिक रोग का शिकार हो गया है,,

 करीब 2 महीने बाद मनीष के लिखे हुए किताब का प्रकाशन हुआ, इस किताब में मनीष में वे सारे अनुभव व सारी जानकारी लिखे थे जो उसने 4 रातो तक उस कुंड में रहकर प्राप्त किए थे,,,

 मनीष के मित्र ने जब या पुस्तक खरीद कर पढ़ना शुरू किया,,,, इस प्रकार था

 मैंने जब उस कुंड में छलांग लगाया मुझे लगा था वह मात्र एक कुंवे जैसा होगा ,,,, लेकिन मेरे मन में संकाय अनेक थी जिसे दूर करने के लिए मैं किसी भी हद तक जा सकता था,

वह कुंड कागि गहरा था.....एक सामान्य कुवें से कही अधिक, फिर वह पानी बिल्कुल सड चूका था जिसकारण दुर्गन्ध के मारे मेरे प्रणाम निकलने ही वाले थे की कुंवे के एक भाग से से रौशनी आती दिखी,,,,मै पुरी तैयारी के साथ गया था,,,इसलिए पानी के अंदर ज्यादा दिक्क़त नहीँ हुई,

कुंवे के एक भाग से रौशनी आता देख मै उस तरफ बाढ़ गया जंहा पाया की वह भाग आगे जाकर खुला हुआ था,मतलब ये की उस कुंवे मे एक गुप्त रास्ता था जो अंदर किसी कोष का द्वार रहा हो,

पुराने ज़माने मे किले के निचे छुपने के स्थान बनाये जाते थे,ठीक यह स्थान वैसा ही था......पर उस स्थान पर मै अकेला नहीँ था, कई सारे अघोरी तांत्रिक उसके अंदर बैठे मिले,,,बात बड़ी अजीब थी, पर वह स्थान कुछ ऐसा था की खत्म होने का नां ही नहीँ ले रहा था,

मै लगातार आगे बढ़ता गया.....कभी बड़ी टोकभी सकरे रास्ते मैंने देखे.....जो किसी दूसरे स्थान को इस स्थान से सीधा जोड़ रहे थे,

वहां कुछ ऐसे रास्ते भी थे जो बस लोगो को चकमा देने के लिए बने थे,जहाँ मै भी कई बार फ़स गया, डरर लग कहीं मै यही ना मर्जी जाऊ पर मुझे इस जगह के बारे मे बताना था,

औऱ निडरता के साथ आगे बढ़ता रहा, उस जवह को देख मन मे यही आ रहा था की बगैर किसी आधुनिक वैज्ञानिक के हमारे पूर्वजो ने इतने गूढ तरिके से इस स्थान को बनाया होगा,

कई दिनों से भूखा प्यासा मै रात को उस जगह से आगे बढ़ने की हिम्मत नहीँ कर पाया,,, जंहा कई प्राणियों के अवशेष पढ़े थे, ये नऱ कंकाल जाने किस खोज मे इधर आए होंगे पर जो भी है रहस्य बड़ा था, उस स्थान से आगे बढ़ने पर सामने काले पानी से भरा एक तालाब मिला, जिसे पार करना खतरनाक हो सकता था, क्युकि जहरीले साँप औऱ बिच्छूवे तों वहां भरे पड़े थे, मै आगे जाकर औऱ भी रहस्यों को उजागर करना चाह रहा था, मगर मेरी हिम्मत अब जवाब दे रही थी,

वहां जाकर मुझे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे कई रहस्य इस कुंड मे दबे पड़े है,,, जो काफी बड़ा हो सकता है, किसी खजाने की तरह,

वापस लौटते वक्त उन साधुओ ने मुझे बुरा इंसान समझ कर बुरी तरह से पिट डाला, जाने अपने शब्दों मे वे क्या केह रहे थे, थोड़ी देर बाद ज़ब उन्हें यकीन हुआ की मै कोई बुरा इंसान नहीँ हु तों उन्मे से एक अघोरी ने मुजगे एक संतरा खाने को दिया,मैंने पूछा आपको ये संतरा यहां कहा मिला...तों वह अघोरी मुझे एक छोटे से पथरीले रास्तो से मुझे वहां से बाहर की औऱ ले गया, वह बाहर का स्थान एक पहाड़ी क्षेत्र था,, जिसका रास्ता बिल्कुल ऊपर की तरफ खुल रहा था,

तीन दिनों के बाद मैंने हवा औऱ सूर्य की रौशनी देखी....जो एक सुखद एहसास था, उसी समय मैंने उस अघोरी से पूछा लिया आप लोग यहां क्या कर रहे हो? खजाने की तलाश मे आये हो क्या?

उन्होंने अपने कान पर हैयह रखते हुए भगवान शंकर का नां उच्चारण करने लगे........शंभू शंभू!!!

मैंने पूछा.....फिर, तों उस अघोरी ने बताया की यह स्थान इस लोक का ब्रह्मास्थान है,,,,

" ब्राम्हस्थान मतलब " मैंने पूछा

तों अघोरी ने बताया की जैसे हमारे शरीर मे हमारी नाभि ब्रह्मास्थान या केंद्र होता है, ठीक वैसे ही इस स्थान से हम अपने शरीर के कई बीमारियों को दूर कर सकते है,

उसी तरह इस लोक के ब्रह्मास्थान पर सीधा अंतरिक्ष से किरणे आती है जिसे ग्रहण करने वाला मनुष्य असाधारण मनुष्यों मे शुमार हो जाता है, हम उन्ही किरणों को अवशोषित करते है, यह तप करने से ज्यादा सरल है,

"इसे ग्रहण करने से क्या होता है " मैंने पूछा
तब अघोरी ने बताया की " अघोरी बनने के बाद हमारे जीवन का मुख्य उद्देश्य रहता है पारब्रह्म मे लीन हो जाना, अर्थात जीतेजी मोक्ष को प्राप्त हो जाना,

औऱ ज़ब यह होता है तों हमें हमारे शरीर की जरूरत नहीँ होती,,,,हम दिब्य किरणों मे रूपांतरीत हो जाते है,

मैंने पूछा " वहां कुछ नरकंकाल वहां पड़े है वे किनके है,

उसने बताया हमसे पहले आने वाले हमारे गुरुजनो के जिन्होंने पारब्रह्म को पाया था,

इनसब बातो से मै बुरी तरह डरर गया,,,लेकिन उसने मुझे समझाया की यह बात डरने वाली नहीँ है बल्कि खुश होने वाली है,

मैंने पूछा " कैसे?"

अघोरी ने बताया की अगर कोई दुख मे होता है औऱ ईश्वर को पुकारता है तों क्या सच मे ईश्वर उसके समक्ष उपस्थित हो जाते है क्या?
नहीँ ना.......लेकिन उस ब्यक्ति के कार्य पुरे अथवा सफल हो जाता है क्युकि आकाश मे मौजूद वे किरणे जो परब्रह्म प्राप्त कर चुके होते है, वे ईश्वर की शक्ल मे कार्य करते है,

औऱ जिसका श्रेय ईश्वर को जाता है, एक तरह से हम अपने आप को ईश्वर को समर्पित करते है, जैसे कोई सैनिक देश के लिए समर्पित होता है ठीक वैसे ही,

अब मुझे उनकी बात समझ आ चुकी थी, औऱ साधु जीवन का उद्देश्य भी, मुझे ख़ुशी हुई की मै उनसे मिलकर ये सब जान सका,

औऱ जिस कुंड को हमारे गाँव वाले भूतिया औऱ ना जाने क्या क्या समझ रहे थे, उसका रहस्य भी मै समझ गया, मैंने उनसे बिदा लेकर वापस लौटते समय अपने आप मे एक दिब्य अनुभूति महसूस की,

जिसके बाद मै अपने जीवन मे कभी नहीँ रुका, औऱ निरंतर मुलाक़ात उदेस्यो पर कार्य करता रहा,
धन्यवाद,

इस कहानी को पढ़ने के बाद मनीष के दोस्त ने मित्र की पुस्तक पुरे गाँव वालो को दिखाया,जिससे उस कुंड के बारे मे लोग जागरूक हुए, औऱ वहां आना जाना आरम्भ कर चुके थे,

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