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Bhagwan-Shiv-dwara-kiye-Gaye-Chamatkar-ki-kahani : भगवान शिव के तले पावन गाँव

मेरी मां मुझे अक्सर अच्छी..... अच्छी कहानियां सुनाया करते थी,

जब छोटी थी मुझे साधुओं की कहानियां सुनाइ, प्रेतों की कहानियां सुनाएं
 छोटे बदमाश बालकों की कहानियां सुनाती , और एक दूत की कहानि सुनाई थी, बाकी सब तो मुझे इतने अच्छे नहीं लगे मगर दूत की कहानी मुझे बहुत अच्छी लगी, और वही कहानी मैं आपको सुनाने जा रही हूं उम्मीद है आपको अच्छी लगेगी............
 दक्षिण भारत का रहने वाला रामनिवास भगवान शिव का भक्त था, पर उसकी वेशभूषा से कभी ऐसा प्रतीत नहीं होता कि वह भगवान शंकर का भक्त है सभी उसे वैष्णव समझते, सिर पर सिखाएं, रखने वाला भला वैष्णो ना होगा तो और क्या होगा......

 परंतु आस्था का तो कोई रूप रंग नहीं होता भगवान शंकर का वह भक्त था और भगवान शंकर भी क्या बात स्वीकार कर चुके थे, रामनिवास के अधीन कई मंदिरों की सफाई का कार्य रहता और वह प्रात काल उठते सभी मंदिरों को साफ करता, यही उनकी दिनचर्या बन गई,

पुराने लोगों के कहने अनुसार भगवान शंकर एक ऐसे देव हैं जो अपनी पूजा से ज्यादा, अपने स्थान की सफाई से प्रसन्न होते हैं

 जो लोग भगवान शंकर की बिना दीप प्रज्वलित किए बिना प्रसाद अर्पित किए एक लोटा जल भी अर्पण क़र दे उस पर भगवान शिव की कृपा हो जाती है और रामनिवास तो हर दिन उनके पूरे मंदिर को जल से  नहलाता था इसलिए भगवान शंकर का उसे खाश आशीर्वाद प्राप्त था,

सभी जानते है वह उन भक्तों की  सुनते हैं जो उनकी मंदिर की सफाई अर्थात जल से धोता है,
 रामनिवास चल का अच्छा इंसान था, हे मंदिर को भली-भांति  स्वच्छ करता, उसके काम से प्रसन्न एक दिन एक बड़ी जमीदार ने उसे अपने मंदिर को प्रतिदिन स्वच्छ करने के लिए कहा इसके बदले उसे दोनों वक्त भोजन बनाने के लिए राशन पानी देने का वचन दिया,

 रामनिवास अब तक बारी मंदिरों को ही स्वच्छ करता था पर वह अब बड़े जमींदार के पुश्तैनी शिव मंदिर को स्वच्छ करने वाला था, मम्मी थोड़ी आशंका भी थी अगर कहीं कोई भूल हो गई तो जमींदार से कोई दंड ना दे दे,

 इसलिए प्रातः काल समय से पहले वह जमींदार के मंदिर उपस्थित हो गया और आज्ञा लेकर मंदिर को स्वच्छ करने चला गया, 1 घंटे के बाद वहां महिलाएं पूजा करने जाने वाली थी,

 रामनिवास ने देखा क्या मंदिर तो बहुत ही महिला है यार लगता है कई सालों से ऐसी वीरान पड़ा था, आसपास जाले लगे हुए थे भगवान शंकर का शिवलिंग भी धूल से भरी हुई थी, उसने मन लगाकर पूरे मंदिर को स्वच्छ कर दिया,

 1 घंटे के भीतर ही उसने पूरे मंदिर को जल से धो डाला, और सभी जाली भी हटा दिए, जब बारी भगवान शिव की शिवलिंग की धोने की आई तो वह लगातार उस पर जल डालता रहा ढलता है ढलता रहा इस तरह उसने एक बाल्टी जल भगवान शंकर पर डाल दिए, तब जाकर भगवान शंकर पूर्णता स्वच्छ हो गये,

 परंतु अभी भी दुविधा में था कि कहीं मैंने कोई जोक तो नहीं करती है जिस कारण हो सके जमीदार मुझसे नाराज हो गये तों, इसलिए मंदिर में एक कोने में खड़ा होकर पुरे मंदिर को ध्यान से देखने लगा,

 वह मन ही मन सोच रहा था इस मंदिर को बनाने वाले ने कितने ध्यान से इस मंदिर को बनाया होगा कितनी अच्छी और सुंदर नाकाशी है इस मन्दिर में,,,,,

 वह मंदिर रामनिवास का मन मोह रहा था, और उधर भगवान शंकर चले आ रहे थे......

 होठों पर मंद मंद मुस्कान दिए भगवान शंकर उसकी भावना से प्रसन्न हो गए और उसने मंदिर को इस तरह साफ किया कि भगवान शंकर भी रह ना सके और उससे मिलने, तथा दर्शन देने स्वयं आ गये,

 हालांकि रामनिवास यह नहीं देखा कि भगवान शंकर शिवलिंग के उपस्थित हुए हैं, माता मंदिर की दीवारों को देखने में लगा पड़ा था, अचानक एक अजनबी को सामने देखकर वह भयभीत हो गया,
 भगवान शंकर ने उसके कंधे पर हाथ रखे और बोले तो तुम बहुत अच्छे इंसान हो रामनिवास तुमने बहुत अच्छा कार्य किया है,

 यह सुनकर रामनिवास को ठंडक पहुंची उसे लगा कोई जमींदार उसके पास आया है, वह भगवान शंकर को जमीदार ही समझ रहा था,
 भगवान शंकर उसके कंधे पर हाथ रखे हुए थे और वह भगवान शंकर के सामने हाथ जोड़े खड़ा था, बिना यह जाने कि जो सामने व्यक्ति खड़ा है वह भगवान शंकर स्वयं है,

 यहां से रामनिवास की किस्मत बदलने वाली थी क्योंकि वह अब भगवान शंकर के खाश लोगो में सुमार होने वाला था..................................

 दिनभर कार्य करने के चक्कर में उसे सुबह की घटना याद ही नहीं रही, परंतु जब रात को सोने गया तों निद्रा की अवस्था में भगवान शंकर का वही मुस्कुराता चेहरा उसके सामने आ गया, उसे मन ही मन थोड़ा अजीब लग रहा था, क्योंकि वह भी समझ नहीं पाया था कि आखिर सच क्या था,

 उसके घर में अब पहले की तरह अन्न की कमी नहीं रही, वह हर सुबह सबसे पहले वह जमींदार वाला मंदिर जाता उसके बाद बाकी सारे मंदिरों में जाता,

और सिर्फ सोमवार को भगवान शंकर उसे किसी न् किसी तरह से दर्शन देते, मन ही मन रामनिवास असीम शांति का अनुभव कर रहा था, उसके जीवन में पहले की तरह अब क्लेश नहीं रहे,

 एक रात्रि जब वह सोया हुआ था, तब उसे आभास हुआ कि कोई उसे आवाज दे रहा है..... रामनिवास रामनिवास...... रामनिवास............... रामनिवास

 वह भी रात्रि में बस आवाज के माध्यम से वह मंदिर चला आया जहाँ भगवान शिव अपने पूर्ण अवतार में बैठे थे, पीछे से एक विशाल नाग भगवान शिव को छाया दे रहा था,

यह मंजर जितना अद्भुत था उतना ही आश्चर्यजनक..... रामनिवास आते ही भगवान शिव के चरणों में गिर क़र रोने लगा.......

हे प्रभु मुझसे भूल हो गयी मैंने आपको नहीँ पहचाना................ मै कैसे आपको नहीँ पहचान सका.... मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गयी,

भगवान शिव ने कहा........ रामनिवास मैंने तुम्हे एक बड़े कार्य के लिए बुलाया है................. उठो और अपने कार्य में लीन हो जाओ,

रामनिवास कौन सा कार्य प्रभु...........
तुम्हे पता भी है तुम्हारे गाँव में बड़ी तबाही होने वाली है..............................................

कैसे प्रभु, और मै क्या क़र सकता हु? इसे रोकने के लिए...

रामनिवास मेरे साथ चलो.....

वह भगवान शिव के साथ अनजाने से जगह में चल दिया....

भगवान शंकर ने उसे "एक छोटे से तालाब में डुबकी लगाने को कहा".....

रामनिवास ने डुबकी लगाई..और भगवान ने उसे कहा जाओ तुम भीगे बदन पुरे गाँव का एक चक्क्र लगाकर वापस यहां एक बार डुबकी लगावो,

रामनिवास ने ऐसा ही किया..... और ज़ब वह वापस डुबकी लगाकर तालाब से निकला तों देखा वह तालाब का पानी पुरी तरह से काला पड़ चूका है,

इस तरह उसने गाँव में फैले विषैले जहर से होने वाले तबाही को रोक दिया,

इसके बाद भगवान शंकर की कई संदेशो को रामानिवास सुनता........ और किसी भी प्रकार की घटना से पूर्व पूर्ण करता,

अब रामनिवास की बेटी की शादी होने को बात थी....
उसकी बेटी काली और कुरूप थी, इस कारन उसे वर मिलने में काफी दिक्क़त हो रही थी, रामनिवास को दूर दूर लडके देखने को जाने पड़ रहे थे....

रास्ते में बैलगाडी का एक पहिया खुलकर दूसरी और जा गिरा, बैलगाडी पर और भी लोग सवार थे.... रामनिवास बस भगवान का नाम जपते जा रहा था, उसे बस एक ही इक्छा थी की उसकी बेटी के हाथ पिले हो जाये.........

पहिया लाने गया, बैलगाडी चालक पहिया तों ना ला सका, मगर ज़ब वह आया तों उसके हाथ में खून लगा हुआ था, उसपर किसी जंगली जानवर ने हमला क़र दिया था, वे लोग जल्दी जल्दी बैलगाडी को वही छोड़कर भाग खडे हुए,

एकाएक ढेर सारे जंगली जानवरो का उस स्थान के निवासियों पर हमला होने लगा, हमला ज्यादातर रात को होता था, इसलिए ज्यादातर पुरुषो को ही जंगली जानवर अपना शिकार बनाया करते थे, उस गाँव में अब धीरे धीरे पुरुषो की कमी होने लगी, और किसी को इतनी हिम्मत भी नहीँ हो रही थी की वे सब उन जंगली जानवरो को काबू क़र पाए,

इधर रामनिवास अपनी बेटी के रिश्ते के लिए के सिलसिले में कई दिनों से बाहर था, इसलिए उसे गाँव की इस कदर ख़राब हो चुकी परिस्थिति से अंजान था,.

ज़ब उसने गाँव में कदम रखा तों सबने उन जंगली जानवरो की बात कहीं.... रामनिवास सीधा भगवान के मन्दिर पहुंचा, वहां जाकर भगवान शंकर को ढूंढने लगा,
 पर भगवान कहीं नजर नहीं आए, रामनिवास ने सोचा शायद आज सोमवार नहीं है इसलिए वह नहीं नजर आ रहा है,

मैं कल फिर आऊंगा
 सुबह होते ही रामनिवास अपनी दिनचर्या के अनुसार मंदिर में जा पहुंचा और साफ सफाई करने के बाद एक Ekta Bhagwan Shankar Ke Shivling एकता भगवान शंकर के शिवलिंग को निहारता बैठा रहा, भगवान शंकर उन्हें पीछे से हाथ देते हुए बोली और कहो रामनिवास क्यों परेशान हो रामनिवास ने उसने अपने गांव में आई विपदा के बारे में बताएं,

 भगवान शंकर मुस्कुराए और बोले तुम्हें हां मुझे पता है तुम किस बात से चिंतित हो मगर तुम उनका सामना अकेले नहीं कर सकते इसके लिए तुम्हें और भी लोगों की जरूरत पड़ेगी जबकि गांव में तो ज्यादातर लोग घायल पड़े हैं,

 रामनिवास बोला मुझे आपके होते हुए किसी और की क्या आवश्यकता पड़ेगी,

 भगवान शंकर भोले जिन्हें तुम मामूली जंगली जानवर समझ रहे हो वह असल में राक्षस है और वह इस गांव को पूरी तरह ध्वस्त करके मेरे मंदिर को अपने कब्जे में करना चाहते हैं, क्या तुम चाहते हो की वे ऐसा करे,

रामनिवास ने कहा " नहीँ "

तों मै तुम्हे जैसा केहता हु वही करो, तुम्हे तों पता हैँ की गाँव में जन की कमी हो रही हैँ, और उनकी भय से कोई बाहर भी आना नहीँ चाह रहा हैँ, तुम्हे उनलोगो को बुलाना होगा,,,,,,,,,, जो अब संसार में नहीँ हैँ,

रामनिवास बोला " मै भला ऐसा कैसे क़र सकता हु "

भगवान शंकर बोले "  तुम क़र सकते हो बस अपने अंतरात्मा से उन्हें आवाज़ लगावो जो अब इस संसार में नहीँ हैँ, तुम्हे जिनके अक्श दीखते हैँ, वे सब आएंगे, पर वो तों मात्र 5-10 ही लोग होंगे क्या उनकी मदद से मै ऐसा क़र सकूंगा?

प्रभु बोले " नहीँ "

रामनिवास "फिर "

प्रभु " तुम बुलावो तों सही "

रामनिवास " ठीक हैँ प्रभु आपकी जैसी इच्छा "

रामनिवास अपनी पुरी श्रद्धा से उन लोगो को याद करने लगा जो अब नहु हैं, और उन्हें मदद के लिए पुकार रहा था,

पर उसने किसी की भी कोई आवाज नहीँ सुनी, लगातार कई दिन बीत गये, पर किसी और से मदद अति नहीँ दिखी,
उसने मन ही मन सोचा ऐसा कभी हो सकता हैँ क्या,,, मरे हुए लोग कब का दूसरे योनियों में जा चुके होंगे,

वो क्या आएंगे मदद करने, हमें तों अपनी मदद खुद ही करनी पड़ेगी,

उसी शाम अचानक मौसम में बदलाव दिखने लगा, कोई बता रहा था तूफान आने को हैँ कोई कोई कह रहा था सैलाब आने को है, साझेदारी साल में थे, कई दिनों तक लगातार बारिश होने की संभावना है जता रहे थे,

 पर किसी को पता नहीं था कि रामनिवास के बुलावे पर ऊपर से मेहमान आने वाले थे, और जो लोग एक बार इस संसार से जा चुके होते हैं उनका दोबारा धरती पर लौटना कोई सामान्य बात नहीं थी इस, वर्षा, तूफान और समुद्र में उठ रही लहरें इसका एक जीता जागता प्रमाण था,

 लगता 2 दिनों की झमाझम बारिश तूफान के बाद रामनिवास के बुलावे पर आसमान से मेहमान आ चुके थे,

 रामनिवास किसी काम से अपने सामने वाले घर मिल गया, वहां उसे वे लोग भी देख रहे थे जिनका निधन उनके सामने हुआ था, अरे उसके लिए ताज्जुब की बात थी,

 उसने महसूस किया कि साथ भगवान शंकर के अनुसार आसमान से मदद आई है, इस तरह वह बारी-बारी से सभी घरों में देखने चला गया कि कौन कौन आया कौन कौन नहीं आया, उसने पाया कि ज्यादातर लोग आ चुके थे,

 मुझे आत्माओं की  अपनी एक शक्ति और ऊर्जा होती है, जिसे वह हर हालत में अपने परिवार को देना चाहता है और देता है,

 और उन्हें  बस यही कार्य करना था, अपने परिवार वालों की हर हाल में रक्षा करनी थी, एक अच्छी बात यह थी कि परिवार वालों में वे सभी लौट आए थे जो किसी न किसी तरह गांव में एक अच्छी भूमिका निभा रहे थे, जैसे गांव के हुए सभी मुखिया जो पूर्व काल में मुखिया, सरपंच, एवं छोटे-मोटे समाज सुधारक  रह चुके थे,

 इस तरह गांव में अनदेखा एक एक शक्ति अपने कार्य पर था पर किसी को इस बात की भनक नहीं थी, गांव के ज्यादातर मर्द आराम कर थे लेकिन फिर भी गांव की रक्षा अच्छी तरह से से हो रहा था,

 इसी बिच एक बार रामनिवास अपने पुश्तैनी गांव में किसी कारण से गया, हालांकि वह घर कई सालों से बंद पड़ा था,
 जब उसने घर के दरवाजे खुले और अंदर प्रवेश किया, उसका घर धूल मिट्टी से भरा पड़ा था, अंधेरा ही अंधेरा नजर आने के बाद भी उसे उसके बैठकर खाने में दर्जनों लोग बैठे दिखे,,,,,,,,, वह बैठकर खाना अजनबीयो से भरा पड़ा था, परन्तु रामनिवास के लिए यह ताज्जुब वाली बात नहीँ थी, उनलोगो को वह सही से पहचान ना सका, कई लोग अँधेरे में होने के कारन दिखे भी नहीँ,

अजीब बात थी एक बुलावे पर इस तरह सभी आ पहुँचे रामनिवास अपने आप को भग्यशाली समझ रहा था, परन्तु बला अभी भी टली नहीँ थी......

वे जंगली जानवर अब धीरे धीरे कम हो रहे थे जिसका सामना करना आसान हो रहा था, और वे रहस्य्मयी जानवर कुछ ही हप्ते में गायब हो गये,

गाँव वाले अब चैन की सांस ले रहे थे, उन सबको ये जानने में कोई दिलचस्पी नहीँ थी की सब ठीक हुआ तों हुआ कैसे, और जीवन सामान्य तरिके से चलने लगी,
अब रामनिवास सुधार की इच्छा लिए वह हर आदेश मानने को तैयार था, इधर के सारे कार्य निपटाने के बाद उसने पास के ही गाँव में अपनी बेटी के लिए मनचाहा वर पाकर प्रसन्न हुआ,

और बड़ी धूमधाम से उसकी शादी की, ramn





















 









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