सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

kalyug-ka-Teesra-Roop : कलयुग का तीसरा औऱ खतरनाक रूप

आँखों के सामने आये अचानक एक दृश्य से बाबा बैजनाथ कुछ परेशान से दिख रहे थे, शिष्यों ने उनसे पूछने की कोशिश भी की पर उन्होंने कुछ बताना जरुरी नहीँ समझा,,,,,,

भला ये नाजुक से शिष्य उस डरावने मंजर को देख क्या समझ पाएंगे....   
बात बेचैन करने वाली तों थी....आखिर बात थी ही कुछ ऐसी......जिस तरह संसार मे अच्छी शक्तिया परस्पर एक दूसरे को जोड़कर बड़ी शक्तिया बनकर सामने अति है,वैसे ही बुरी शक्तिया भी अपने जैसो को ढूंढ़ कर विकरालरूप धारण करने की कोशिश मे लगी रहती है, ताकि वह राज कर सके उस प्राणी जगत पर जंहा सब कुछ दृष्टि की मदद से साक्षात्
प्राप्त हो जाता है,

बाबाजी बैजनाथ ने भी हजारों सालो से कैद उस बुरी शक्ति के पुनः जागृत होने औऱ कहीं भूल से प्राणी जगत पऱ हावी होने को लेकर चिंता  ब्यक्त की है,

जिसप्रकार अच्छाई का वास है, उसी प्रकार अँधेरे मे बुराई भी निवास करती है, परन्तु हमारे अंदर की ऊर्जा इतनी शक्ति शाली नहीँ होती की हम उन अच्छी या बुरी शक्तियों को खुली आँखों से देख पाए,

पर कोई ऐसा जरुरत होता है जिसे अच्छी बुरी चीजों का आभास हो जाता है, जैसे बाबाजी बैजनाथ को हुआ था...... विकराल भयँकर पथरो की बेड़िया डाले,,,,,,,,मुंडमाल पहने वह राक्षस इसी लोक के गर्भ मे वास कर रहा है,

किसी भी तरह की लापरवाही जो उस तक होकर जाती है.......अगर वह हो गयी तों अनजाने मे वह रिहा हो जायेगा, फिर वह लोगो की नियति से खिलवाड़ करेगा,

यही भय से बाबाजी कभी नहीँ चाहते की वह दैत्य वहां से कभी छूटे,,,,,,,,,, 

पृथ्वी पर धर्म की स्थापना को लेकर सजग रहने वाले बाबाजी बैजनाथ अकाशिये ऊर्जा का रूपनांतरण करना आरम्भ कर चुके है,

इस ऊर्जा की मदद से आने वाली पीढ़ियों मे त्रेतायुग वाले गुण देखने को मिल सकते है, परन्तु उसके लिए वह ऐसे किसी भी चीज को बढ़ावा देने से परहेज कर रहे है, जो नकारत्मक शक्तियों से जुडा हो,

औऱ यही उनकी भय का मुख्य कारन बना हुआ है की अगर वह अधर्मी स्वतंत्रता प्राप्त कर लेता है तों.......... वह पुनः अंधकारमय भविष्य लाने की कोशिश मे लग जायेगा.....जो की कलयुग का तीसरा रूप कहला सकता है ,

कलयुग का पहला रूप,,,लूट,पाट,चोरी,डकैती,रेप, औऱ बाकी सारी चीजे तों संसार मे चल ही रही थी, पर फिर भी लोगो मे इंसानियत देखने को मिक्ति थी 

दूसरा तों हम देख ही रहे है, किस तरह बीमारियों के आधीन होकर लोगो को तड़पता छोड़ अपनी अपनी जान बचाने मे लगे पड़े है, कलयुग का तीसरा रूप विन्ध्यवन्सक होगा, यह रूप एकदूसरे को खत्म करने के लिए काम करेगा......जो की मानवता के लिए हथियार प्रहार समान होगा,,


इससे पहले की यह तीसरा रूप एक दूसरे को विरोधी बनाकर मरने मारने को तूल जाये, उस वजह को ही नष्ट कर दिया जाना चाहिए जो इसकी असल फसाद है..........

औऱ यह तभी मुमकिन है ज़ब हम अपने अंदर ऐसे गुणों को बिकसित ना करके अच्छे गुणों को बिकसित करे,

बाबाजी बैजनाथ आने वाले उस काल से डर रहे है जो लोगो को एक दूसरे के जान का दुश्मन बना देगा,,,,,,

एक समय बाद हर चीज के लिए छिना छपटी करने को आतुर रहेंगे लोग...किसी ने अपने मुँह से एक अपशब्द निकाल दिए तों उसे हमेशा के लिए खत्म करने की साहस लेकर घूमते नजर आएंगे ये लोग........

समय जैसे जैसे बीतेगा....राक्षसी प्रविर्ति जागृत होने लगेगी........चीजों के अभाव मे,लोगो की कड़वाहट शिखर पर होंगी,

इसे नष्ट ना किया गया तों एक दूसरे को मारते काटते दिखेंगे सभी,

औऱ तब मानवता की सबसे बड़ी हार होंगी,,इसलिए बाबाजी इस दैत्य रूपी कलयुग के तीसरे रूप को हमेशा के लिए खत्म कर देना चाहते है,






टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

भगवान शिव का मन्दिर

बड़ा नाम सुना था उस मन्दिर का, लोग कहते है सच में वहां भगवान शिव विराजमान है, पर मुझे कभी यकीन नहीँ हुआ, भला भगवान शंकर साक्षात् किसी भी मन्दिर में कैसे रह सकते है, फिर भी मै वसुंधरा अपने परिवार जनो के संग उस मन्दिर के दर्शन को निकल गयी, मन्दिर काफी दूर था,,,,, और हमारे गाँव से ईरिक्शा के जरिये मन्दिर तक पहुंचने में पांच घंटे लगे,,,,, इतना समयानुसार लगने वाला था इसलिए हम सुबह 5 बजे ही घर से निकले थे, और 10 बजते बजते हम मन्दिर के सामने खडे थे, देखने से तों यह मन्दिर बिल्कुल आम मन्दिर की तरह साधारण ही लग रही थी, मामूली सा ढाँचा.... मन्दिर से निकलते ही सामने एक बरगद का पेड और पेड से ठीक निचे बड़ी सी नदी........ धूप भी पुरी मन्दिर तक नहीँ पहुंच पा रही थी.... भला इस मन्दिर में असि क्या खाश बात हो सकती है जो भगवान शिव यहां ठहरे हुए है...... चलो मन्दिर जाकर देखते है...... मन्दिर के भीतर प्रवेश करते ही इतनी शीतलता महसूस हुई जैसे किसी ने Ac ऑन क़र रखी हो, मन्दिर के बीचोबीच एक सफ़ेद शिवलिंग विराजमान था, और शिव लिंग के थी बाहर नंदी महराज भगवान शंकर के पहरेदार बने हुए थे, सामने बर्गर बरगद ...

जीवन का चक्र

सुना था, जीवन की शुरुआत जन्म से होती है, पर किस जन्म से जो पहले बीत गया, या जो आनेवाला है... इसी कश्मकश मे जी रही सीमा,,,,, इस दुनिया मे खुद क़ो अकेला मानती है, लोग तो भरे थे उसके इर्द गिर्द बस हर कोई हर किसी क़ो समझ पाए सायद ये मुमकिन नहीँ..... सीमा सामान्य जीवन जीने वाली साधारण सि लड़की कई साल पहले अपने पिता के जाने के बाद वैसा प्यार दुलार संरक्षण दोबारा उसे महसूस नहीँ हुआ, एक बार वह एक ऐसे इंसान से मिली जिसने उसके कई सवालों के जवाब ढूंढने मे उसकी मदद की.... वह थे उसके क्लास टीचर मिस्टर राजेश कुमार.....वैसे साधारण बोली भाषा वाले उसके क्लास टीचर कई सारे विषयो मे अच्छी रूचि रखते थे, तर्क वितर्क मे उन्हें हरा पाना आसान काम नहीँ था..... सीमा उनसे 10 वर्ष पहले अपने विद्यालय मे मिली थी.... कई बार उन्हें ऐसे प्रश्नों का जवाब देता देख सीमा नें अपने अंदर उठरहे प्रश्नों क़ो उनकी सामने रखा,,,,, दरअसल सीमा और राजेश सर एक हीं सफर के यात्री थे......उन्हें भी पानी पिने से पहले थोड़ा जल ज़मीन पर गिराने की आदत थी,,,,, वो तब ऐसा क्यों करते थे सीमा तब नहीँ समझ सकी प्रपने पिता के जाने के बाद काफी ...

Bhagwan-Shiv-dwara-kiye-Gaye-Chamatkar-ki-kahani : भगवान शिव के तले पावन गाँव

मेरी मां मुझे अक्सर अच्छी..... अच्छी कहानियां सुनाया करते थी, जब छोटी थी मुझे साधुओं की कहानियां सुनाइ, प्रेतों की कहानियां सुनाएं  छोटे बदमाश बालकों की कहानियां सुनाती , और एक दूत की कहानि सुनाई थी, बाकी सब तो मुझे इतने अच्छे नहीं लगे मगर दूत की कहानी मुझे बहुत अच्छी लगी, और वही कहानी मैं आपको सुनाने जा रही हूं उम्मीद है आपको अच्छी लगेगी............  दक्षिण भारत का रहने वाला रामनिवास भगवान शिव का भक्त था, पर उसकी वेशभूषा से कभी ऐसा प्रतीत नहीं होता कि वह भगवान शंकर का भक्त है सभी उसे वैष्णव समझते, सिर पर सिखाएं, रखने वाला भला वैष्णो ना होगा तो और क्या होगा......  परंतु आस्था का तो कोई रूप रंग नहीं होता भगवान शंकर का वह भक्त था और भगवान शंकर भी क्या बात स्वीकार कर चुके थे, रामनिवास के अधीन कई मंदिरों की सफाई का कार्य रहता और वह प्रात काल उठते सभी मंदिरों को साफ करता, यही उनकी दिनचर्या बन गई, पुराने लोगों के कहने अनुसार भगवान शंकर एक ऐसे देव हैं जो अपनी पूजा से ज्यादा, अपने स्थान की सफाई से प्रसन्न होते हैं  जो लोग भगवान शंकर की बिना दीप प्रज्वलित किए बिना...