आँखों के सामने आये अचानक एक दृश्य से बाबा बैजनाथ कुछ परेशान से दिख रहे थे, शिष्यों ने उनसे पूछने की कोशिश भी की पर उन्होंने कुछ बताना जरुरी नहीँ समझा,,,,,,
भला ये नाजुक से शिष्य उस डरावने मंजर को देख क्या समझ पाएंगे....
बात बेचैन करने वाली तों थी....आखिर बात थी ही कुछ ऐसी......जिस तरह संसार मे अच्छी शक्तिया परस्पर एक दूसरे को जोड़कर बड़ी शक्तिया बनकर सामने अति है,वैसे ही बुरी शक्तिया भी अपने जैसो को ढूंढ़ कर विकरालरूप धारण करने की कोशिश मे लगी रहती है, ताकि वह राज कर सके उस प्राणी जगत पर जंहा सब कुछ दृष्टि की मदद से साक्षात्
प्राप्त हो जाता है,
बाबाजी बैजनाथ ने भी हजारों सालो से कैद उस बुरी शक्ति के पुनः जागृत होने औऱ कहीं भूल से प्राणी जगत पऱ हावी होने को लेकर चिंता ब्यक्त की है,
जिसप्रकार अच्छाई का वास है, उसी प्रकार अँधेरे मे बुराई भी निवास करती है, परन्तु हमारे अंदर की ऊर्जा इतनी शक्ति शाली नहीँ होती की हम उन अच्छी या बुरी शक्तियों को खुली आँखों से देख पाए,
पर कोई ऐसा जरुरत होता है जिसे अच्छी बुरी चीजों का आभास हो जाता है, जैसे बाबाजी बैजनाथ को हुआ था...... विकराल भयँकर पथरो की बेड़िया डाले,,,,,,,,मुंडमाल पहने वह राक्षस इसी लोक के गर्भ मे वास कर रहा है,
किसी भी तरह की लापरवाही जो उस तक होकर जाती है.......अगर वह हो गयी तों अनजाने मे वह रिहा हो जायेगा, फिर वह लोगो की नियति से खिलवाड़ करेगा,
यही भय से बाबाजी कभी नहीँ चाहते की वह दैत्य वहां से कभी छूटे,,,,,,,,,,
पृथ्वी पर धर्म की स्थापना को लेकर सजग रहने वाले बाबाजी बैजनाथ अकाशिये ऊर्जा का रूपनांतरण करना आरम्भ कर चुके है,
इस ऊर्जा की मदद से आने वाली पीढ़ियों मे त्रेतायुग वाले गुण देखने को मिल सकते है, परन्तु उसके लिए वह ऐसे किसी भी चीज को बढ़ावा देने से परहेज कर रहे है, जो नकारत्मक शक्तियों से जुडा हो,
औऱ यही उनकी भय का मुख्य कारन बना हुआ है की अगर वह अधर्मी स्वतंत्रता प्राप्त कर लेता है तों.......... वह पुनः अंधकारमय भविष्य लाने की कोशिश मे लग जायेगा.....जो की कलयुग का तीसरा रूप कहला सकता है ,
कलयुग का पहला रूप,,,लूट,पाट,चोरी,डकैती,रेप, औऱ बाकी सारी चीजे तों संसार मे चल ही रही थी, पर फिर भी लोगो मे इंसानियत देखने को मिक्ति थी
दूसरा तों हम देख ही रहे है, किस तरह बीमारियों के आधीन होकर लोगो को तड़पता छोड़ अपनी अपनी जान बचाने मे लगे पड़े है, कलयुग का तीसरा रूप विन्ध्यवन्सक होगा, यह रूप एकदूसरे को खत्म करने के लिए काम करेगा......जो की मानवता के लिए हथियार प्रहार समान होगा,,
इससे पहले की यह तीसरा रूप एक दूसरे को विरोधी बनाकर मरने मारने को तूल जाये, उस वजह को ही नष्ट कर दिया जाना चाहिए जो इसकी असल फसाद है..........
औऱ यह तभी मुमकिन है ज़ब हम अपने अंदर ऐसे गुणों को बिकसित ना करके अच्छे गुणों को बिकसित करे,
बाबाजी बैजनाथ आने वाले उस काल से डर रहे है जो लोगो को एक दूसरे के जान का दुश्मन बना देगा,,,,,,
एक समय बाद हर चीज के लिए छिना छपटी करने को आतुर रहेंगे लोग...किसी ने अपने मुँह से एक अपशब्द निकाल दिए तों उसे हमेशा के लिए खत्म करने की साहस लेकर घूमते नजर आएंगे ये लोग........
समय जैसे जैसे बीतेगा....राक्षसी प्रविर्ति जागृत होने लगेगी........चीजों के अभाव मे,लोगो की कड़वाहट शिखर पर होंगी,
इसे नष्ट ना किया गया तों एक दूसरे को मारते काटते दिखेंगे सभी,
औऱ तब मानवता की सबसे बड़ी हार होंगी,,इसलिए बाबाजी इस दैत्य रूपी कलयुग के तीसरे रूप को हमेशा के लिए खत्म कर देना चाहते है,
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