रहस्यों के बिच फ़सी एक जिंदगी.....की कहानी
भौतिक जीवन के अलावा दूसरी दुनिया के अनुभवों को महसूस करना हर किसी के बस की बात कहा है,,,, ऐसे लोग संसार मे बहुत कम होते है,,,,औऱ उन कम लोगो मे एक नाम प्रियंका का भी था....ज़ब भी वह कोई गलती करती उसके आस पास ऐसे लोग आने सुरु हो जाते जिन्हे ना तों वो ठीक से देख पाती,औऱ ना ही पहचान पाती,
जाने किस उद्देश्य से जन्मी थी प्रियंका......... प्रकीर्ति से सीखने की ललक थी इसलिए प्रकृति से जुड़ी हर चीजों को गौर से नहीं आती थी उसके अंदर विशाल प्रश्नों का अंबार था जैसे आसमान कितना बड़ा है नदी का पानी बैठे-बैठे जाता कहां है, रात में पक्षियों सोती कहां है और ना जाने ऐसे कितने सवाल उसके मन में हर दिन आते थे, भरे पूरे माहौल में पली-बढ़ी प्रियंका अपने लोगों में अलग पहचान रखती थी,
ईश्वर के प्रति उसकी गहरी आस्था थी, शायद इसलिए उसके मार्ग में आगे बढ़ने के लिए बेबी उसकी मदद करते थे,
पक्षियों से उसकी बचपन से अच्छी बनती थी, जब 18 वर्ष की हुई उसके पिता ने एक नया घर खरीदा, घर के आस-पास पक्षि बड़ी तादाद में रहते थे, एक दिन जब वो छत पर खड़ी थी, एक बड़ा गिद्ध आया, और उसके सर पर पैर आगे बढ़ गया,
प्रियंका बहुत बुरी तरह से डर गई थी, भला से कौन ना डरे, उनकी मोटी मोटी आंखें और नुकीले पीले चोंच देख कर भयावह लगता है, इस वजह से कई महीनों तक वह डरती रही और छत पर नहीं गई,
कुछ महीनों बाद उसके पिता कल स्वास्थ्य बिगड़ने लगा, जिस कारण प्रियंका काफी चिंतित रहने लगी, एक सुबह जब वह अपनी रसोई में काम कर रही थी, सर को उठाते ही सामने एक बड़ा सा प्रियंका को निहारता बैठा था,उस मोहल्ले में गिद्ध का रहना मामली बात था, इसलिए प्रियंका नहीं एक सौ बिल्कुल भी गौर नहीं किया, लगातार अपने काम में लगी रही,
कृपया करके मन में एक बात खत्म करें कि इससे पहले उसने कभी भी गिद्ध को मांस का टुकड़ा खाते नहीं देखा, और वह भी लगातार प्रियंका को ही घूरता जा रहा था, प्रियंका ने अपना ध्यान वहां से बार-बार हटाने की कोशिश की, मगर उसकी सुनहरे पंख पीली चोंच देख कर उसे कुछ अजीब तरह की अनुभूति हो रही थी, क्योंकि वह गीत बिल्कुल साफ सुथरा और बाकियों से ज्यादा पीला दिख रहा था, औऱ आँखों मे गजब का तेज था जो प्रियंका को चुंबक की तरह अपनी औऱ आकर्षित कर रहा था,
वह करीब देढ घंटो तक वही बैठा अपना शिकार खाता रहा, प्रियंका का यह अनुभव उसके माथे पर पसीने ले आ रहा था, मन मे बस एक ही प्रश्न दौड़ रहे थे,,,,,आखिर क्यूँ?
प्रियंका को अचानक उसके पिता की ज्यादा तबियत खराब होने की खबर मिली.......वह मिलने पहुंची तों उसके पिता बिल्कुल स्वस्थ्य लग रहे थे,,,, अच्छे से बात भी हुई, औऱ अहले सप्ताह होने वाले परिवारिक समारोह की बातें भी कर रहे थे, फिर अचानक उनके ना रहने की बात सुनने को मिली,
प्रियंका को यह एक झटके जैसा लगा.......इस घटना के बाद कई महीने तक वह उस गिद्ध वाली बात को भूल नहीँ पायी, जाने वह क्या बताना चाहता था, या फिर एक अशुभ संकेत देकर भविष्य के प्रति आगाह करने आया था वह गिद्ध,
प्रियंका ने हमेशा प्रकृति से अपनापन दिखाया था,लेकिन उस गिद्ध के ब्यवहार ने उसे विमुख होने पर मजबूर कर दिया,
वह मकान मे कही भी रहती पर अपने छत पर जाए की उसकी हिम्मत नहीँ होती कही फिर से उन पर नजर ना पड़ जाये,
समय बिता कई वर्ष हो चले थे....अब वह उस घटना को भूला चुकी थी....
घर के एक कोने मे पड़े पड़े प्रियंका का शरीर अब काफी फ़ैल सा गया था, औऱ उसने अपने वजन को कम करने की सोची,
जिसके लिए उसे परिवार के लोगो ने छत औऱ पार्क मे टहलने की सलाह दि, पार्क तों ठीक है पर छत !!!!
फ़िरभी किसी तरह हिम्मत कर वह छत पर जाना आना चालू कर चुकी थी, उसके दिमाग़ मे एक तरकीब आई क्यूँ ना अपने डर को अंदर से खत्म कर दू, अब वह हर पल आस पास बैठे गिद्ध को निहारने लगी,,, उन्हें समझने की कोशिश करती,
इस बिच अचानक उसकी एक दूर के परिजन का स्वास्थ्य खराब हो चूका था,,सभी उसके लिए सलामती की दुवा करने मे लगे थे, औऱ फिर उसी तरह वह गिद्ध पैरो मे मांस का टुकड़ा दबाये प्रियंका को उसके रसोई घर के सामने की खिड़की पर निहारता दिखा,,,,,,,
प्रियंका को दोबारा वह मंजर देखकर उसके हाथ पैर सुन्न होने लगे,,,, वह डरर से कांप रही थी,
की अब उस बीमार परिजन को कोई नहीँ बचा सकता,,, औऱ उसके जाने मे सिर्फ एक सप्ताह का समय शेष बचा है,
इतना कुछ पता होने के बाद भी प्रियंका ने उस गिद्ध के सामने काफी हाथ पैर जोड़े,,,, काफी बिनती की, पर उसका कोई असर नहीँ हुआ औऱ वही हुआ जिसका प्रियंका को डरर था,
इस घटना के बाद वह समझ चुकी थी की यह एक इशारा है उस गिद्ध का जो ईश्वर की तरह आकर प्रियंका को पहले ही आने वाली घटना को बता जाता है,,,,ताकि वह किसी तरह इसे रोक ले, यह फिर कुछ उपाय कर सके,
औऱ यह सिर्फ दो बार की बात नहीँ थी ......हर बड़ी घटना से पहले यह होना तय था...औऱ तीसरी बार भी ठीक उसी तरह वह गिद्ध उसी तरह प्रियंका के रसोई घर वाले खिड़की पर बैठा मिला....
लेकिन इस बार प्रियंका ने एक साधु से इस घटना का जिक्र किया था.....औऱ उस साधु महराज ने रातभर जाग कर महामिर्त्युनंजय मंत्र का जाप करते हुए हवन किया, जिसके बाद बड़ी बाधा तों टल चुकी थी मगर अंश मात्र की अब भी बाकी थी,,,,,
कुछ चीजे ऐसी होती है जिसे थोड़े समय के लिए टाला तो जा सकता है, लेकिन रोक पाना असंभव होता है, आने वाला समय इसी का उदाहरण है |
दोष चाहे जिस पर भी लगे मगर समय अपना काम कर के जा चूका होता है, जैसे प्रियंका के पिता के जाने के दौरान हुआ था,
प्रियंका ने अपने ईश्वर भक्त होने की ना जाने कितनी दुहाई दी थी,,,क्युकि वह किसी से भी इस घटना का जिक्र करेगी तों वे सब उसे ही डायन समझेंगे,,,की इसी ने सबकुछ किया है,
मन औऱ आत्मा से हार मानते हुए गिद्ध देव की प्रियंका ने पूजा करनी सुरु कर दी, सायद किसी दिन उन्हें प्रियंका पर दया आ जाये औऱ भविष्य मे होने वाली इस तरह की घटनाओ को प्रियंका को पूर्वभास देना सायद वे बंद कर दे,
या फिर प्रियंका इन घटनाओ को रोक पाने मे सक्षम बन सके, इस दौरान उन गिद्ध से उसकी दोस्ती हो गयी, जिस तरह प्रियंका उन्हें निहारती रहती वे भी प्रियंका के आते ही ऊपर नजर आने लगते,
इस दौरान प्रियंका ने सोचा की सायद अब सब ठीक हो जायेगा..... औऱ वह उन्हें गरुड़ का दूसरा रूप मानकर कई सारी इच्छाएं भी जाहिर की, औऱ वे इच्छाएं अनचाहे तरिके से पुरी होती गयी,
अब प्रियंका के अंदर एक भावना घर करने लगी,,,,,,, के इतने सारे महान औऱ अद्भुत शक्तियों से भरे ये गरुड़ देव अगर यहा रहते है तों इसकी भी कोई विशेष वजह होंगी.....
सायद भगवान विष्णु का निवास आस पास ही कहीं हो,,,,,,,,,, एक दिन अपने मन मे ये ख़ास सवाल लिए एक गिद्ध से पूछा ही लिया.....
की आपके अधिपती कहा निवास करते है?
औऱ वे हमेशा की तरह मुँह फेर कर आकाश की औऱ गमन कर गये......
उनकी स्वाभाविक मे रुखापन जोटा है,वे किसी को भी इतनी जल्दी स्वीकार नहीँ करते,,,,, पर मैंने अपना प्रश्न जारी रखा....... मुझे भी जानना था की ज़ब वे सब असीमशक्तियों को लिए यहां रहते है, तों उन्हें अपना वाहन बनाने वाले देव का भी कहीं पास मे ही आश्रय होगा !!!!!!!
मैंने उनका पीछा नहीँ छोड़ा....औऱ हर दिन एक ही सवाल कियां?
मेरी इच्छा शक्ति से वे भी अब हार मान चुके थे,,,,,,,,
इस दौरान मेरी एक इच्छा थी की कार्तिक माह मे श्री विष्णु को घर मे स्थापित करू......
पर कोई राह ही नजर नहीँ आ रहा था,,,,,घरवालो से इस बारे मे बात करने से बेवजह भड़क रहे थे, औऱ कार्तिक माह के बस कुछ ही दिन शेष बचे थे,
मेरी भगवान श्री विष्णु के प्रति जन्मी आस्था बार बार एक ही बात पर आकर अटकी थी, बस उन्हें किसी तरह घर ले आऊ,,,
पहले तों मेरी बात सुनने के लिए भी कोई तैयारी नहीँ था, इसलिए अंदर ही अंदर भावुक होने लगी,,, की यदी इस वर्ष नहीँ कर पायी तों घरवालों की चाह के अनुसार अगले वर्ष का लम्बा इंतजार करना होगा,
पर मुझसे नहीँ हो सकेगा औऱ एक साल का इंतजार..... इसलिए अपनी बात को सबके सामने दोहराती ही जा रही थी, जिसपर सभी बुरी तरह से क्रोध मे आ चुके थे, एक सुबह सबने अपनी आखिरी राय बता ही दी की हम चाहते है की अगले वर्ष ही श्री विष्णु की स्थापना घर मे करे,
ये बात सुनकर प्रियंका खुद को रोक नहीँ पायी,,,,औऱ फुट फुट कर रोने लगी..... वह एक दिन तक लगातार रोती रही,अगली सुबह अचानक उसे गिद्ध की आवाज खिड़की से आनी सुरु हो गयी, प्रियंका ने झाका तों सामने गिद्ध महराज प्रियंका को एकटक निहारते मिले,,,,,,,,उनकी पास कोई मांस का टुकड़ा नहीँ था,
इसलिए प्रियंका को भय नहीँ ख़ुशी महसूस हुई,,,, गिद्ध के रूप मे वे स्वम् गरुड़ देव ही थे जिन्होंने प्रियंका के अंदर चल रही द्वन्द को समझा, प्रियंका के मन मे उस दौरान बस एक ही बात चल रही थी मेरी मनोकामना पुरी हो जाये तों मै उनकी हर रोज़ चरण धोकर पियूँगी....
आजकल के इंसानो से आप सारी बात खुलकर भी बता दे तों भी वे आप पर विस्वास करने से पहले 100 बार सोचते है, पर उन्होंने बिना मेरी कोई बात सुने जाने मेरे पास आकर मेरी मनोकामना पुरी कर दी,
औऱ ना जाने कैसे कैसे मेरे घरवाले स्थापना के लिए तैयारी हो गये, औऱ शुभ मुहूर्त के अंदर ही उनकी स्थापना भी हो गयी, यह मेरे लिए कोई चमत्कार से कम नही था,
एक भक्त के मन की बात सिर्फ भगवान ही जान सकते है,इंसान मे इतनी शक्ति कहा?
इस दौरान कार्तिक माह के पूर्णिमा के दिन भगवान श्री विष्णु ने स्वम् स्वप्न मे आकर प्रियंका को दर्शन दिये ,,,
वह स्वप्न कुछ इस प्रकार था प्रियंका बताती है की ज़ब वह छत पर किसी काम से गयी...तों करीब 20 फुट ऊँचा कोई मनुष्य छत के किनारो पर चलता कोई मनुष्य दिखा, प्रियंका ज़ब नजदीक गई तों वह सामने आ खडे हुए,,,,,,,,,,,औऱ कहने लगे बड़ा मेरा पता पूछा करती थी देखो मै तों यही हु,,, कोई एक झलक देखकर ही बता दे की वे स्वम् श्री विष्णु जी थे.....औऱ मै तों उनकी भक्त हु तों उन्हें पहचानती कैसे नहीँ,
पर मुझे सिर्फ एक बात का दुख रहा मैंने उनसे कुछ कहा नहीँ,पुरा समय सिर्फ उन्हें निहारती रह गयी.....तन पर सिर्फ सोंने के वजनदार गहने,,,,,निचे हल्की पीली धोतीनुमा वस्त्र पहने हुए थे,
उनकी तं के जेवर हाथ पर बंधे सोने के बाजुबंध से उनका उनका शरीर दिब्य दिख रहा था, जिससे नजरें हटाना किसी के लिए नामुमकिन होता |
हमारी ये कहानी आपको कैसी ललगी कमैंट्स मे जरुर बताये, औऱ इसे शेयर करे,
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